गायरी गुर्जर इतिहास

गायरी /गारी/ मेवाडा गायरी गुर्जर वंश -इंजी राम प्रताप सिंह गुर्जर
गायरी गुर्जर वंश का वो पन्ना हे जिसके बिन गुर्जर होते हुए भी , उनके लोग उनकी तरफ आने में परेशानियां पैदा कर देते हैं और ऐसा सिर्फ कुछ छोटे छोटे नेता और उनकी मन्द बुध्ददि और कुछ छोटे बच्चे जो इतिहास और उनके क्षेत्रों से परिचित तो नहीं हैं लेकिन उनके ऊपर उँगली  करते हैं ,
गारी, गायरी,भारुड़, भरवाड़ जातियां मूलत गुर्जर है
मेवाड़ा गायरी/गुर्जर/गारी/गाडरी/भारवाड़/भारुड़ - जाति एक नाम अनेक ये सभी वीर गुर्जर है। जोकि मेवाड़ मूल के है या मेवाड़ से निकले है। जो पशुपालन के कारण इतने नामों मे बटे है।
गुर्जर कितनी बड़ी जाती है यह अब पता चला है गायरी गुर्जर समाज के भाइयों को अभी भी नहीं पता है कि हम कितने हैं जो 100 किलोमीटर तक ही अपनी सीमा निर्धारित कर चुके वह समाज को नहीं पता कि हम गुर्जर हैं। 250-300 किमी के बीच 3 नामों में बटा समाज कितना अशिक्षित है इसकी कल्पना की जा सकती है। मेवाड़ - मेवाड़ा गाडरी/गायरी 2. मालवा - चौधरी ( मेवाड़ा गारी/गायरी) 3. हाड़ोती - गुर्जर (गायरी गुर्जर) गुर्जर कितनी बड़ी जाति एवं कौम है यह गायरी को आज तक नहीं पता है वह तो बस अपने को गायरी गुर्जर बोल देता है। और ज्यादा जीरह करो तो गायरी और गुर्जर दो भाई है, यह कह कर बात खत्म, और दन्त कहानी सुनने को मिलेगी की गायरी गाय के गर्भ से और गुर्जर उसकी जर से हुऐ हैं। जिस पर सिर्फ हंसी आती है। बल्कि ऐसा नहीं है, गुर्जर का संधि विच्छेद होता है - गुर्+जर जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है, मध्य प्रदेश के धार,रतलाम,इंदौर एवं उज्जैन जिलों के विभिन्न गांवों में रहने वाले चौधरी(गायरी) झालावाड़, मेवाड़ ,आदि जगहों पर भी  यह लोग गायरीoगायरी/गायरी/रेवारी- ये उपजातियां राजस्थान में प्रचलित
गायरी शव्द की उत्पत्ति -गायरी नाम मेवाड़ झालावाड़ तथा मध्यप्रदेश की सीमा से सटीक हे ! गायरी शव्द की दन्त कथाओं के अनुसार गायरी गाय के गर्भ से पैदा हुए हैं जो सुन ने में हमे अच्छा लगता हे लेकिन इसका ऐतिहासिक अवलोकन किसी इंसान ने नहीं किया हे खुद गायरी गुर्जर भी इसमें ही ज़िंदा हैं education का
ायरी शवद की उत्पत्ति उनके कर्म के अनुसार उनकी पहचान बनी हे ,मेवाड़ क्षेत्र सै गायरी की उत्पत्ति  समझ में आती हे जिसमे इन लोगों के अलग काम /व्यवसाय वट गए जिसमे गायरियो ने जो व्यवसाय चुना वो था गाय पालन /गौ रक्छक /गाय रखने वाला आदि इनके नाम पड गए  जिसका शुध्ध रुप जो है वो आज गायरी /गारी बन गया जबकि गडरिया जो हे वो भेड पालन करते हैं उनका व्यवसाय अलग , उनका जाती भी अलग हे क्यों की गडरिया एक जाती हे और गायरी एक गोत्र हे जो देव नारायण भगवान् के उपासक हैं !
प्रभावी क्षेत्र- गायरियों के प्रभावी क्षेत्र में मालवा इंदौर उज्जैन रतलाम मंदसौर झालावाड़ मेवाड़ क्षेत्र में मौजूदगी बहुत ज्यादा मात्रा में हे और ये सभी अपने को गुर्जरों से अभिन्न नहीं मानते हैं बल्कि गुर्जर ही मानते हैं इनमे आज १५० सै ज्यादा गोत्र बन चुके है जो आज मौजूद हैं

मध्य प्रदेश के धार,रतलाम,इंदौर एवं उज्जैन जिलों के विभिन्न गांवों में रहने वाले चौधरी(गायरी) लिखते हैं चुनेधार(Dhar)रतलाम(Ratlam)इंदौर(Indore)उज्जैन(Ujjain) आदि मै आते हैं

धार(DHAR)
बुकड़ावदा खेड़ी(Bukdavada Khediघटगारा(Ghatgara)बालौदा माजी(BalodaMaji)पडुनिया(Paduniya)खरेली(Khareli)बदनावर(Badnawar)संदला(Sandala)तिलगारा(Tilgara)भैंसोला(Bhainsola)लीलीखेड़ी(Lilikhedi)मुल्थान(Multhan)बेगन्दा(Beganda)रूणिजा(Runija)छौ छोटी(Chho Chooti)छौ बड़ी(Chho Badi)सनोली(Sanoli)कोद(Kod)बिड़वाल(Bidwal)शेरगढ़(Shergarh)बरमंडल(Barmandal)पंचमुखी(Panchmukhi)कुसावदा(Kusavada)मुसावदा(Musavada)खैरोद(Kherod)सादलपुर(Sadalpur)वरनासा(Varnasa)कणवा(Kanwa)गोगाखेडी(Gogakhedi)भाटबामन्दा(Bhatbamanda)

 गोत्र -
सरकारी प्रमाण गायरी गुर्जर-

मवाड राजवंश - पन्ना धाय का जिस मेवाड़ राजवंश से  सम्वन्ध वो पन्ना धाय को इतिहासकार डॉ.व्यास ने गायरी गुर्जर बताया हे
नोट-गायरी गुर्जर हैं गडरिया जबरस्ती या धनगरी करण इतिहास ना बिगाडें
                                 



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